google.com, pub-4122156889699916, DIRECT, f08c47fec0942fa0 https://www.bing.com/webmasters?tid=56256cd2-0b6b-4bf5-b592-84bcc4406cf4 google.com, pub-4122156889699916, DIRECT, f08c47fec0942fa0 प्राकृति के स्पूत जिन्हें काटा जा रहा है google.com, pub-4122156889699916, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Verification: 7f7836ba4c1994c2

प्राकृति के स्पूत जिन्हें काटा जा रहा है


प्राकृति के स्पूत जिन्हें काटा जा रहा है 


 



             सड़कों के किनारे खड़े वृक्ष ! हररोज देखता था आते- जाते उनको | कभी बारिश के मौसम में भीग जाते तो और भी सुहाने और अच्छे लगते|  उस सुहाने मौसम में मैं धीरे - 2 चलता ताकि उनको निहार सकूँ | कुछ वर्ष ऐसे ही गुजर गए और एक दिन उनकी तरफ एक राक्षस (दैत्य ) चला आ रहा था उनको रोंधते हुए बेजुबान समझ कर अपने पैरोँ तले कुचलते हुए |    








            मैं दुःखी मन से कई दिन तक वंहा से ऐसे ही गुजरता रहा | वे सब एक - 2 कर कर काटते चले गए | ऐसा लगा मनो सिपाही शहीद होते जा रहे है | अचानक एक दिन मैंने किसी पूछा कि ये पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं तब उसने बताया  कि सरकारी सड़कें और आवास योजना के निर्माण के कार्य के लिए इन बेज़ुबानों को काटा जा रहा है | 


             अब क्या था सड़क अपर धुप थी सड़क खोज रही थी अपने उन साथियों को , जो अपनी विशाल बाहों में समेत कर बचते थे उन्हें धूप गर्मी और वँहा के धुँवे से और हमसब को सुन्दरता प्रदान करते थे | आधुनिकता और तरक्की की समापत न होने वाली भूख  ने उनका  वजूद  ही  मिटा   दिया था |   


             आज उस स्थान पर बड़ी इम्मारत रूपी मकान खड़े थे जो कभी घर नहीं बन सकते, क्योंकि उनमे रिश्तों के रहने के लिए जगह नहीं है , वो तो पिंजरे के समान है , जो कैद कर लेते है इंसान की मानसिकता को और मशीनों के सहारे रहना सीखा देता है | 


             प्रकृति से नाता तोड़ देते है लाश सिर्फ इंसानो की ही नहीं होती , बल्कि लाश तो उन बेजुबानों की  गिरी थी  दर्द  भी  हुआ  होगा  जब  उनकी 
एक - 2 टहनी को तोड़ा मरोड़ा गया होगा और उनके विशाल तने पर प्रहार किया होगा बार - 2 | 







           परन्तु इन्सान क्या जाने , जो खुद मशीनों के सहारे चलने वाला मुर्ख इन्सान | पहले कमाता है , फिर उसको वातानुकूलित मशीन , कूलर , पँखे इत्यादि सामान खरीदने में गवां देता है | जब बाद में प्रलय जैसी विपदा आती है तब याद करता है प्रकृति के उन सपूतों को और फिर प्रचार करता है , " आओ मिलकर पेड़ लगाएं अपनी वनस्पति को बचाएं |" 


          कब वो पेड़ लगेंगे , कब बड़े होंगे , तब तक क्या ? अगर अपने जीवन में हम ये संक्लप लें कि , "आओ पेड़ बचाएं , या यूं  कहिये वनस्पति को बचाएँ |" तो कितना अच्छा होगा , क्योंकि एक पेड़ को वृक्ष बनने में कितने साल , कितनी मेहनत और कितनी देखभाल चाहिए , जब हम ये जान लेंगे तभी हमें इन सब की महत्ता पता चलेगी |  



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