नजरिया अपनी सोच का ?
प्रकाश साहब अपने घर के बरामदे में बैठे - बैठे कलाई घड़ी , अलार्म घड़ी , मोबाइल और दूसरी अन्य चीजें को साफ करते हुए अपनी नाराजगी के साथ कुछ बोलते जा रहे थे | उनकी बातें सीधी उनकी पत्नी सोलु से हो रही थी जो उनसे थोड़ी दूर बैठी थी |
पड़ोस में बैठी संगीता भी उनकी ये सब बातें सुन रही थी जो उनके बिल्कुल नजदीक थी | प्रकाश जी कह रहे थे सोलु कितना त्याग किया है मैंने | पूरे 25 साल तो जैसे हवा में उड़ा दिये इन दोनों बच्चों की परवरिश में और कौनसी कमी छोड़ी मैंने ? मन पसंद कॉलेज में एडमिशन कराया, मन पसंद कैम्पस में दाखिला करवाया |
अब दोनों छात्रावास में क्या गए , तीन दिन से फ़ोन तक नहीं किया है | अन्दर से पत्नी सोलु की आवाज आई किन्तु आपने तो किया था न , एक ही बात है |
हाँ हाँ, मैंने तो किया | मैं तो बाप हूँ न , मुझे ही करना है फ़ोन, परन्तु परसों से कुछ पता नहीं, क्या कर रहे हैं वंहा ? यार उनको खुद भी तो जागरूक होना चाहिए | आराम की जिन्दगी दी है किसलिए ? इसीलिए की बस वंहा पर अपना अध्ययन ठीक से करें और अपनी खबर समय से माँ - बाप को भी दे |
उनको करना क्या है वँहा , ना खाना बनाना और न बर्तन धोने हैं | तब भी बस नबाव हैं एक फ़ोन तक नहीं कर सकते |
प्रकाश जी कुछ ज्यादा ही गुस्सा करने लगे तो संगीता अपने घर से निकली और उनके घर पर आ गई | उसने प्रकाश जी को नमस्ते किया , तब जबाव में प्रकाश जी ने भी हँसकर नमस्ते की |
परन्तु उनका गुस्सा अभी भी कायम था | उनकी तल्खी पर प्रतिक्रिया देते हुए संगीता ने कहा , " आप अपने बच्चों के ब्लॉग को नहीं पढ़ते ? मैं तो हमेशा इन्तजार करती हूँ और बड़े प्यार से पढ़ती हूँ |"
प्रकाश जी खिसयानी हँसते हुए , " अरे वह कुछ काम में व्यस्त हूँ। .... " कहकर टालने लगे तो संगीता बोली , ठीक है आप काम करिए मैं आपको पढ़कर सुनाती हूँ इसीबीच सोलु भी वंहा पर आ जाती है | संगीता अपने फ़ोन से पढ़ने लगी , " आज छात्रावास में पहला दिन बहुत व्यस्तता भरा रहा |
हम दोनों हॉस्टल के गेट पर उतरे और टैक्सी से सामान उतारा , वंहा पर सात काउन्टर बने हुए थे एक एक करके हमने अपने अपने प्रमाण पत्रों की जाँच करवाई | यह सब पूरा करके हम प्रवेश गेट पर गए | तब तक पापा के तीन फ़ोन आ चुके थे, उनसे भी बात करते रहे | वँहा गेट पर भी चार गॉर्ड खड़े थे उनके दो रेजिस्टरों पूरी जानकारी लिखी उसके बाद सारा सामान लेकर छात्रावास तक पहुँचे |
वँहा पर भी गार्ड के दो रेजिस्टरों में पूरी जानकारी भरी और रेजिस्टर गार्ड को वापिस दिए | उसके बाद अपने कक्ष में गए , जो बिल्डिंग के दसवें मंजिल पर है |
पापा का फिर से फ़ोन आया और संक्षेप में बात हुई | उसके बाद हमने कमरे को अपने हिसाब से सफाई करके सेट किया | और फिर मेस में भोजन किया और सो गए | जब हमारी नींद खुली तो रात हो चुकी थी |
फिर भी हमने थोड़ा कैंपस देखा और जल्दी वापिस आ गए | क्योंकि अगली सुबह कॉलेज भी अटेंड करना है कॉलेज का समय आठ घंटे का है | कल ही छात्रवृति का फार्म भी भरना है | कॉलेज में प्रवेश पाने वाले छात्रों में शिर्ष अंक वाले छात्रों में हम दोनों का नाम है |
यह सूचना हमें कॉलेज की मेल से मिल गयी है , परन्तु सब कन्फर्म होने पर ही पापा को यह खुसखबरी देंगे | इस तरह से पूरा दिन वयस्तता में बीत गया | ये कहते हुए संगीता चुप हो गई |
"अच्छा"| प्रकाश जी का मुँह खुला रह गया | संगीता भी अब निश्चित हो कर अपने घर लौट गयी | उसने दूर से देखा कि अब प्रकाश जी हँसते हुए अपने पौधों को पानी दे रहे हैं और फूलों को देखकर गुनगुना रहे थे। .. गुनगुना रहे हैं भँवरे.......|
4 टिप्पणियाँ
Heheheh. Very good 👍 sir. Keep writing. Read your blog in the morning, can relate to it so feeling good now.
जवाब देंहटाएंKeep writing relatable blogs sir.
Very nice sir. Keep writing relatable blogs .
जवाब देंहटाएंThanks for motivate me.
हटाएंThanks metish
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