बुढ़ापे की लाठी कौन ?
हरियाणा के नारायणगढ़ में रुलिया राम नाम से एक वृद्ध आदमी रहता था जिसकी उम्र तक़रीबन 74 - 75 वर्ष की होगी | घर में उसका बेटा , बहू और उसके दो पोता -पोती रहते थे | जनवरी का महीना और कड़कड़ाती सर्दी में लोगोँ का जीना हराम था | रुलिया राम नींद से उठकर जब बिस्तर पर बैठे तो इधर -उधर अपनी लाठी को टटोलने लगे | मगर उन्हें उनकी लाठी नहीं मिली , तब उन्होंने अपने पोते को जोर से आवाज लगाई , "ओ चंदू बेटा , सुनो ! तुमने मेरी लाठी कँहा पर रख दी ? मुझे मिल नहीं रही है |"
अपने दादू की आवाज सुनकर चंदू दौड़ा हुआ आया और बोला , "कि दादू तुम्हें लाठी की क्या जरुरत है | मैं हूँ ना |" मुझे आप अपनी लाठी समझ कर पकड़ लो , फिर जँहा चलना है चलो |
अरे बेटा , तुम्हेँ क्यों अपनी लाठी समझूँ | तुम मेरी लाठी ही तो हो | ये कहते हुए रुलिया राम अपने पोते चंदू की मदद से बिस्तर से उठे और उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर चलने को कहा कि तभी चंदू की बहन रेखा भी आ गयी | उसने भी अपने दादा का एक हाथ पकड़ लिया | रुलिया राम ने दोनों बच्चों से कहा , "कि वे उसको बाहर बैठा दें | ताकि वह भी बाहर की ताजी हवा ले सके और थोड़ी देर बाहर आँगन में टहल भी लें |
रुलिया राम को कुर्सी पर बैठा कर दोनों बच्चे खेलने लग गए | दोनों बच्चों (अपने पोता - पोती ) के कारण रुलिया राम बहुत संतूस्ट थे | इतनी उम्र के बावजूद भी वह बिना लाठी के ही चलते थे , जब भी रुलिया राम को सहारे की जरुरत पड़ती दोनों बच्चे उन्हें सहारा दे देते |
लेकिन अब करोना की वजह से समय बिल्कुल बदल गया है | जब से सामाजिक दूरी का फार्मूला सरकार ने लागू किया है तब से रुलिया राम का जीना हराम हो गया है | जब भी रुलिया राम को सहारे की जरुरत होती तो वे चंदू को आवाज देते |
चंदू और रेखा दोनों भाई बहन दौड़कर तो आते , मगर दरवाजे पर ही रुक कर अन्दर झाँकते और अपने दादू से बोलते , "दादा जी ! आपकी लाठी आपके बिस्तर के सिरहाने रखी है आप उसी का सहारा लेकर बाहर आ जाओ |"
एक दिन रुलिया राम से बर्दास्त नहीं हुआ तो वह जोर से चिल्ला पड़े , "अरे ! तुम दोनों अन्दर क्यों नहीं आ रहे हो ? मुझे पकड़ो या न पकड़ो , किन्तु मेरी लाठी तो पकड़ा दो | ना जानें कँहा पर रख देते हो तुम दोनों ?" चंदू ने अपने मुँह पर अंगुली रखकर रेखा को ना बोलने का संकेत देकर दबे पैर अंदर आया और अपने दादा को लाठी पकड़ाते हुए धीरे से बोला , "कि दादू आपकी तबियत ठीक नहीं रहती है न |
हमेशा खांसते और छींकते रहते हो , इसलिए माँ ने आपसे दूर रहने के लिए कहा है | अभी माँ घर पर नहीं है , इसीलिए मैं आपको पहुँचा देता हूँ , लेकिन आप अपनी लाठी अपने नजदीक ही रखना, ताकि माँ को पता न चल पाए कि मैंने आपको पहुँचाया है | "
रुलिया राम को बहुत ज्यादा दुःख हुआ यह सुनकर , बाहर जाने की बजाये वो वंही बिस्तर पर धम्म से बैठ गए | दादा के संबल बनने वाले बच्चे अब करोना काल में दादा से दूर होते जा रहे थे | यह बात रुलिया राम के लिए बहुत दुखदाई थी | किन्तु रुलिया राम के बेटे शीशपाल ने दरवाजे पर खड़े होकर चंदू की सारी बातें सुनली जो अभी आफिस से आया था
चाय पीने के बाद उन्होंने चंदू,रेखा और उनकी माँ शीला को पास बुलाकर समझाया , "सामाजिक दुरी का मतलब यह नहीं होता कि रिश्तों की नींव ही खोद दो | दादा जैसे पहले थे वैसे आज भी हैं तुम्हे और रेखा को कभी कोई बीमारी हुई उनसे ? नहीं ना | तो फिर यह सनक क्यों सवार हुई तुम लोगों पर ? हमें तो कोरोना बीमारी से बचने लिए उन लोगों से दूर रहना है जो बाहर से आ रहे हैं |
बाहर से आने वाले करोना के कैरियर बन सकते हैं, इसलिए हमें उनसे दूर रहकर कोरोना की चैन को तोड़ना है,न कि आपसी रिश्तों को ही तोड़ मरोड़कर रख देना है | आपसी स्नेह, संबल और सहयोग का रिस्ता कायम रखकर पारिवारिक सुख का सम्मिलित रूप से उपभोग करो और एक दूसरे का साथ निभाओ | इस संकट के समय में पारिवारिक एकता को कायम रखकर ही परिवार की खुशियाँ बटोरी जा सकती हैं | इसलिए ऐसे सम्बन्धों को कायम रखो |
दूसरे कमरे में बैठे रुलिया राम की आँखों से संतुस्टी और खुशी के आँसू टपकने लगे | वह बुदबुदाया कि जिस घर में ऐसा समझदार बेटा हो , वंहा के बड़े बुजर्गों को किसी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए | उसी समय चंदू दौड़ा हुआ उसके पास आया और बोला , "दादा चलिए , आपको थोड़ी देर बाहर की ठंडी हवा में बैठा दें | "
"नहीं बेटा , आज देर हो गयी है | कल चलेंगे बाहर बैठने | जरा देखना मेरी लाठी कंहा है ?"
"दादा", अब लाठी क्या काम है ? जब जरुरत होगी आप आवाज दे देना , मैं आ जाऊंगा | मैं हूँ ना आपकी प्यारी लाठी, आपके पास |" इतना कहकर चंदू उछलते -कुददते हुए खेलने के लिए बाहर चला गया तो रुलिया राम आराम करने लगा | उसके चेहरे पर संतोष और सकुन की छाया मंडरा रही थी |
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