मासूम दुआएँ छोटे बच्चों के द्वारा ?नहीं
हरियाणा के शहर अम्बाला के सेक्टर 10 के कोठी नम्बर 427 के मुख्य द्वार पर दो बच्चों जो रिश्ते में सगे भाई - बहन थे उनकी नजर टिकी रहती | यँहा पर मैं बताता चलूँ , कि क्योँ वे दोनों बच्चे वँहा पर नजरें गड़ाए रहते उस दरवाजे के बाहर हर रोज कुछ नयी - 2 खाने की चीजें उनको पड़ी मिलती जिसको वह दोनों भाई - बहन जानवरों के खाने से पहले ही उठा कर खा लेते | क्योंकि उनको सुखी रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब होती, बाकी खाने के व्यंजनों की बात तो बहुत दूर थी | इसलिए वे दोनों बच्चे वँहा पर खाना फेंकने का बेसब्री से इंतजार करते | रोज वँहा पर तरह - तरह के व्यंजन फेंके जाते जिनको वे दोनों भाई - बहन बड़े चाव से खाते थे |
एक रोज घर की मालकिन दीप्ती ने देखा, "कि उसके घर के मुख्य द्वार के पास दो बच्चे बहुत देर से इधर -उधर चक्र काट रहे हैं |" तो उसने उन दोनों बच्चों से थोड़ी ऊँची आवाज में पूछा, "बच्चों ! तुम दोनों यँहा पर क्यों घूम रहे हो |" थोड़ी देर के लिए दोनों बच्चे डर से गए | मगर थोड़ी देर के बाद लड़की ने हिम्मत जुटाकर जबाव दिया | आंटी गेट के बाहर रोज कुछ ना कुछ खाने की वस्तुवें फेंकी जाती हैं जिन्हें उठा कर हम दोनों भाई- बहन खाते हैं मगर पिछले दो दिनों से नहीं फेंका |
दीप्ती को सारी बात समझ में आ गई | दीप्ती का बेटा प्रदीप वो सब खाने की चीजें फेंकता था जिनको उठाकर वे बच्चे बड़े चाव से खाते थे दो दिन से प्रदीप की तबियत ज्यादा होने के कारण डॉक्टर ने उसे तरल पदार्थ देने के लिए कहा था दीप्ती ने मन में सोचा कि भगवान की लीला भी अजीब है जिसके पास खाने के लिए सबकुछ है वह खा नहीं सकता और जो खा सकते हैं उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है |
थोड़ी देर सोचने के बाद दीप्ती दोनों बच्चों को अपने घर के अन्दर ले गई और उनको बिठा कर भरपेट खाना खिलाया | फिर उसने दोनों बच्चों से कहा, "कि अब तुम्हें नीचे गिरा हुआ खाने की जरुरत नहीं है जब तुम्हें भूख लगे तो यँहा पर चले आना | मेरा बेटा तो खा नहीं सकता , तुम लोगों को खिलाकर शायद मेरे मन को कुछ सकुन मिल सके | " यह कहते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए |
क्या हुआ आपके बेटे को आंटी जी , दोनों बच्चों ने एकसाथ पूछा |
मेरे बेटे को दिल की बिमारी है पता नहीं वह जी पायेगा भी या नहीं, "दीप्ती ने रोते हुए कहा |"
आप रोइये मत आंटी जी , आपका बेटा ठीक हो जायेगा हम भगवान से दुआ करेंगे | बच्चों के स्वर में इतनी आत्मीयता की मिठास थी कि दीप्ती सुनते ही भावुक हो गई |
एक हप्ते के बाद डॉक्टर ने प्रदीप के दिल के ऑपरेशन की तारीख दे दी| देखते ही देखते वह दिन भी आ गया | डॉक्टर ने पहले ही कह दिया, "कि केश बड़ा ही क्रिटिकल है | " कोशिश करना हमारा काम है बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में है | सुबह के नौ बजे से ऑपरेशन शुरु हुआ और दोपहर तीन बजे खत्म हुआ | ऑपरेशन थियेटर से जैसे ही डॉक्टर साहब बाहर निकला, वैसे ही उनको सबने घेर लिया | "चमत्कार हो गया | अब आपका बेटा खतरे से बाहर है | पांच - छ घंटे में होश आ जायेगा |" डॉक्टर साहब ने मुस्कराते हुए कहा |
जो भी सुन रहा था , वह आश्चर्य कर रहा था | ऐसे चमत्कार की आशा किसी को भी नहीं थी | दीप्ती को लगा, "जैसे चमत्कार के पीछे उन बच्चों की मासूम दुआएं हैं |
#kid's praying #kid's praying to god #unbelievable
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